Shopping Ideas

Friday, January 22, 2010

दैत्य

प्रतीक्षा के दैत्य ने
मेरे जीवन के एक और दिन को
अपने ज़ालिम जबड़ों से
चबा चबा कर खाया
और मैं बेबस सा
इस क्रूरता को देखता रहा-झेलता रहा।
तेरा पैग़ाम फ़रिश्ता बन कर
पता नहीं कब आएगा
और पता नहीं कब
इस दैत्य का अंत होगा।

रवि कांत 'अनमोल'

No comments:

Post a Comment