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Monday, April 30, 2012

एक चेहरा भी तो चाहिए रूबरू


इस तरह हो गए वो मिरे रू--रू
हुस्न हो जिस तरह इश्क के रू--रू

दूर ही दूर से बात मत कीजिए
आइए दो घड़ी बैठिए रू--रू

आप ने मुँह जो फ़ेरा तो ये हाल है
ज़िंदगी हो गई मौत के रू--रू

जी रहे हैं तो हम बस इसी आस पर
कभी हमको दीदार दे रूबरू

तू ही तू है दिलो जान में हां मगर
एक चेहरा भी तो चाहिए रूबरू

जिसने उनको बनाया है इतना हसीं
काश उसको भी हम देखते रूबरू

मेरी ग़ज़लों के पर्दे में ऐ दोस्तो
रूह मेरी रही आपको रूबरू

मां की याद आती है


मैं घर से दूर जाता हूँ तो मां की याद आती है
अकेला ख़ुद को पाता हूँ तो मां की याद आती है

यहाँ परदेस में दिन भर मश्क्कत कर थका हारा
मैं जब कमरे में आता हूँ तो मां की याद आती है

ग़मों का सामना करने की हिम्मत मां से पाता हूँ
जो ग़म में डूब जाता हूँ तो मां की याद आती है

गिरो तो उठ के फिर चलना यही मां ने सिखाया है
कभी जब डगमगाता हूँ तो मां की याद आती है

हुनर वो जानती है मुश्किलों पर मुसकुराने का
कभी जब मुस्कुराता हूँ तो मां की याद आती है

अभी तक गूँजती है उसकी लोरी मेरे कानों में
मैं जब भी गुनगुनाता हूँ तो मां की याद आती है

मिरी हर जीत मेरी हर खुशी मां की दुआ से है
मैं जब खुशियां मनाता हूँ तो मां की याद आती है

ये शीरीं लफ़्ज़ ये जुमले मेरी मां ने मुझे बख्शे
ग़ज़ल तुमको सुनाता हूँ तो मां की याद आती है