मैं घर से
दूर जाता हूँ तो मां की याद आती है
अकेला ख़ुद
को पाता हूँ तो मां की याद आती है
यहाँ परदेस
में दिन भर मश्क्कत कर थका हारा
मैं जब कमरे
में आता हूँ तो मां की याद आती है
ग़मों का
सामना करने की हिम्मत मां से पाता हूँ
जो ग़म में
डूब जाता हूँ तो मां की याद आती है
गिरो तो उठ
के फिर चलना यही मां ने सिखाया है
कभी जब
डगमगाता हूँ तो मां की याद आती है
हुनर वो
जानती है मुश्किलों पर मुसकुराने का
कभी जब
मुस्कुराता हूँ तो मां की याद आती है
अभी तक
गूँजती है उसकी लोरी मेरे कानों में
मैं जब भी
गुनगुनाता हूँ तो मां की याद आती है
मिरी हर जीत
मेरी हर खुशी मां की दुआ से है
मैं जब
खुशियां मनाता हूँ तो मां की याद आती है
ये शीरीं
लफ़्ज़ ये जुमले मेरी मां ने मुझे बख्शे
ग़ज़ल तुमको
सुनाता हूँ तो मां की याद आती है
माँ कों समर्पित बेहतरीन गज़ल ... बहुत शुभकामनायें ...
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