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Thursday, October 16, 2014

ग़ज़ल: हम अपने दिल को भी समझा न पाए


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मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल
 
जो शिकवे थे लबों तक आ न पाए  
हम अपने दिल को भी समझा न पाए               

मिला था प्यार भी लेकिन म़कद्दर                
उसे जब वक्त था अपना न पाए               

करें क्या ज़िक्र अब उस दास्तां का    
जिसे अंजाम तक पहुंचा न पाए               

तुम्हारी रहनुमाई थी कि मुझको               
वो उलझे रास्ते भटका न पाए               

मुक़द्दर पर चला है ज़ोर किसका           
कि मंज़िल सामने थी, जा न पाए               

जो करना है अभी अनमोल कर लो           
कि अगली सांस शायद आ न पाए               





Wednesday, October 15, 2014

ग़ज़ल : ये हसीं पल कहाँ से लाओगे


मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल


http://www.redgrab.com/index.php?route=product/product&path=119&product_id=342ये हसीं पल कहाँ से लाओगे          
वक़्त ये कल कहाँ से लाओगे      

भीग लो मस्तियों की बारिश में          
फिर ये बादल कहाँ से लाओगे      

ज़िंदग़ी धूप बन के चमकेगी           
माँ का आंचल कहाँ से लाओगे      

वक़्त के हाथ बेचकर सांसें          
ज़िंदगी कल कहाँ से लाओगे      

जब जवानी निकल गई प्यारे          
दिल ये पागल कहाँ से लाओगे      

ज़िंदगी बन गई सवाल अगर          
इसका तुम हल कहाँ से लाओगे      

नर्म ये घास जिस पे चलते हो          
कल ये मख़मल कहाँ से लाओगे      

ये मधुर गीत बहते पानी का          
कल ये क़लक़ल कहाँ से लाओगे      

ये शिकारे ये दिलनशीं मंज़र          
और यह डल कहाँ से लाओगे      

अट गई जब ज़मीन महलों से          
दाल चावल कहाँ से लाओगे      

बाग़ जब कट गए तो ऐ अनमोल          
ये मधुर फल  कहाँ से लाओगे      



गज़ल- आइए ज़िन्दगी की बात करें


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मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल


प्यार की दोस्ती की बात करें    
आइए ज़िन्दगी की बात करें      

कोई हासिल नहीं है जब इसका    
किस लिए दुश्मनी की बात करें      

ज़िक्र हो तेरी अक़्लो-दानिश का    
मेरी दीवानगी की बात करें      

आप नज़दीक जब नहीं तो फिर   
किस से हम अपने जी की बात करें      

बीती बातों में कुछ नहीं रक्खा  
बैठिए हम अभी की बात करें      

बात कुछ आपकी हो मेरी हो    
और हम क्यूं किसी की बात करें            

ग़ज़ल-वो प्यार ख़ुद को गंवा कर तलाश करना है

मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल


http://www.redgrab.com/index.php?route=product/product&path=119&product_id=342
तुम्हीं को रूह के अंदर तलाश करना है                   
तुम्हीं को जिस्म के बाहर तलाश करना है                   

जो प्यार ख़ुद को भुलाने की वज्ह बन जाए                   
वो प्यार ख़ुद को गंवा कर तलाश करना है                   

तलाश किसकी है मेरी उदास आँखों को                   
न जाने कौन सा मंज़र तलाश करना है                   

तू जिस मक़ाम पे भी है उसे समझ आग़ाज़                   
मक़ाम और भी बेहतर तलाश करना है                   

जहां से बे-ख़ुदी मुझको ज़रा सी मिल जाए                   
अभी तो ऐसा कोई दर तलाश करना है                   

वो झूमती हुई मुझको सुराहियाँ तो मिलें                   
वो नाचता हुआ साग़र तलाश करना है                   

तुम्हारे वास्ते जैसे भटकता हूँ अब मैं                  
तुम्हें भी कल मुझे खो कर तलाश करना है                   

मैं तेरे दर को ही अक्सर तलाश करता हूँ                    
मिरा तो काम तिरा दर तलाश करना है                  

तुम्हीं हो रास्ता 'अनमोल' तुम ही मंज़िल हो                   
डगर डगर तुम्हें दर-दर तलाश करना है                  

Tuesday, October 7, 2014

पंजाबी ग़ज़ल

आज मेरी एक पुरानी पंजाबी ग़ज़ल 

ਖਬਰੇ ਕਿੰਨੇ ਚੰਨ ਤੇ ਸੂਰਜ ਖਾ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ
ਉੱਡਦੇ ਪੰਛੀ ਅੰਬਰੋਂ ਹੇਠਾਂ ਲਾਹ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ

ਰੱਬ ਹੀ ਜਾਨੇ ਕੈਸੀ ਨੇਹ੍‌ਰੀ ਝੁੱਲੀ ਹੈ ਇ‍ਸ ਦੁਨੀਆ ਤੇ
ਸ਼ੇਰ ਬਹਾਦਰ ਕਿੰਨੇ ਮਾਰ ਮੁਕਾ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ

ਮਾਪਿਆਂ ਕੋਲੋਂ ਪੁੱਤ ਖੋਹ ਲੀਤੇ ਭੈਣਾ ਕੋਲੋਂ ਵੀਰ ਗਏ
ਬੱਚਿਆਂ ਕੋਲੋਂ ਬਾਪ ਦੇ ਹੱਥ ਛੁਡਾ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ

ਕਿੰਨੀਆਂ ਨਾਰਾਂ ਡੀਕਦੀਆਂ ਨੇ ਬੈਠੀਆਂ ਸਿਰ ਦੇ ਸਾਈਂ ਨੂੰ
ਕਿੰਨੇ ਮਾਹੀਂ ਅਪਣੀ ਰਾਹ ਚਲਾ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ

ਖਾਧ ਖੁਰਾਕਾਂ ਖਾ ਕੇ ਜੋ 'ਅਨਮੋਲ' ਬਨਾਉਂਦੇ ਸਨ ਜੁੱਸੇ
ਕਿੰਨੇ ਗਭਰੂ ਟਾਹਣਾਂ ਵਰਗੇ ਢਾਹ ਲਏ ਇਹਨਾ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੇ

ਰਵੀ ਕਾਂਤ ਅਨਮੋਲ