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Wednesday, October 15, 2014

ग़ज़ल : ये हसीं पल कहाँ से लाओगे


मेरे ग़ज़ल संग्रह टहलते-टहलते में से एक ग़ज़ल


http://www.redgrab.com/index.php?route=product/product&path=119&product_id=342ये हसीं पल कहाँ से लाओगे          
वक़्त ये कल कहाँ से लाओगे      

भीग लो मस्तियों की बारिश में          
फिर ये बादल कहाँ से लाओगे      

ज़िंदग़ी धूप बन के चमकेगी           
माँ का आंचल कहाँ से लाओगे      

वक़्त के हाथ बेचकर सांसें          
ज़िंदगी कल कहाँ से लाओगे      

जब जवानी निकल गई प्यारे          
दिल ये पागल कहाँ से लाओगे      

ज़िंदगी बन गई सवाल अगर          
इसका तुम हल कहाँ से लाओगे      

नर्म ये घास जिस पे चलते हो          
कल ये मख़मल कहाँ से लाओगे      

ये मधुर गीत बहते पानी का          
कल ये क़लक़ल कहाँ से लाओगे      

ये शिकारे ये दिलनशीं मंज़र          
और यह डल कहाँ से लाओगे      

अट गई जब ज़मीन महलों से          
दाल चावल कहाँ से लाओगे      

बाग़ जब कट गए तो ऐ अनमोल          
ये मधुर फल  कहाँ से लाओगे      



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