पठानकोट के यूनाइट होटल में एक भव्य समारोह में मेरे उस्ताद साहिब जनाब राजेंद्र नाथ रहबर साहिब को दक्षिण भारत का प्रतिष्ठित डॉ० सी नारायण रेड्डी पुरस्कार, विश्व की १५० भाषाओं में ग़ज़ल गाने वाले विश्वप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास जी ने प्रदान किया। उसी समारोह में मुझे भी सम्मानित किया गया । दोहरी खुशी दोहरा मान। आभार डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास जी।
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Friday, December 25, 2015
उस्ताद साहिब का सम्मान और मुझे मिला मान
पठानकोट के यूनाइट होटल में एक भव्य समारोह में मेरे उस्ताद साहिब जनाब राजेंद्र नाथ रहबर साहिब को दक्षिण भारत का प्रतिष्ठित डॉ० सी नारायण रेड्डी पुरस्कार, विश्व की १५० भाषाओं में ग़ज़ल गाने वाले विश्वप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास जी ने प्रदान किया। उसी समारोह में मुझे भी सम्मानित किया गया । दोहरी खुशी दोहरा मान। आभार डॉ० ग़ज़ल श्रीनिवास जी।
Wednesday, October 7, 2015
ज़िंदगी टूटा हुआ इक खाब है
ज़िंदगी टूटा हुआ इक खाब है
या किसी किस्से का कोई बाब है
हां कभी शादाब था ये दिल मगर
अब कहां इस में वो आबो-ताब है
या किसी किस्से का कोई बाब है
हां कभी शादाब था ये दिल मगर
अब कहां इस में वो आबो-ताब है
Sunday, August 30, 2015
अब तो आती नहीं इधर खुश्बू
उड़ गई ले हवा के पर खुश्बू
क्या पता जाए किस नगर खुश्बू
फूल की पंखुड़ी पे सोई थी
तितलियों से गई है डर खुश्बू
फूल झूमे बहार की धुन पर
पल में हर सू गई बिखर खुश्बू
असमानों से आग बरसी है
है पसीने से तर-ब-तर खुश्बू
अब तो बनती है कारखानों में
थी बहारों की हमसफ़र खुश्बू
बाग में जब भी आम पकते थे
आया करती थी मेरे घर खुश्बू
आप इक बार मुस्कुरा दीजे
जाएगी हर तरफ़ बिखर खुश्बू
तुम जहां भी जिधर भी जाते हो
फैलती है उधर उधर खुश्बू
बन गए अब मकान खेतों में
अब तो आती नहीं इधर खुश्बू
रवि कांत अनमोल
क्या पता जाए किस नगर खुश्बू
फूल की पंखुड़ी पे सोई थी
तितलियों से गई है डर खुश्बू
फूल झूमे बहार की धुन पर
पल में हर सू गई बिखर खुश्बू
असमानों से आग बरसी है
है पसीने से तर-ब-तर खुश्बू
अब तो बनती है कारखानों में
थी बहारों की हमसफ़र खुश्बू
बाग में जब भी आम पकते थे
आया करती थी मेरे घर खुश्बू
आप इक बार मुस्कुरा दीजे
जाएगी हर तरफ़ बिखर खुश्बू
तुम जहां भी जिधर भी जाते हो
फैलती है उधर उधर खुश्बू
बन गए अब मकान खेतों में
अब तो आती नहीं इधर खुश्बू
रवि कांत अनमोल
ये बादल हैं कि गेसू कौन जाने
तू शबनम है कि आंसू कौन जाने
यहां पर कौन है तू कौन जाने
हवा कुछ सरफिरी सी लग रही है
कहां जाएगी खुश्बू कौन जाने
तू किन लफ़्ज़ों में क्या समझा रहा है
तेरी बातों का मौज़ू कौन जाने
हवा में बे-तरह लहरा रहे हैं
ये बादल हैं कि गेसू कौन जाने
छुपी हर शे'र में हैं कितनी हैं बातें
न जाने कितने पहलू कौन जाने
रवि कांत अनमोल
too shabanam hai ki aansoo kaun jaane
yahaan par kaun hai too kaun jaane
hawaa kuchh sarfiri si lag rahi hai
kahaan jaayegi khushbhoo kaun jaane
too kin lafzon mein kya samjha rahaa hai
teri baaton kaa mauzu kaun jaane
hawa mein betrah lehraa rahe hain
ye baadal hain ki gesoo kaun jaane
chhupi har sher mein kitni hain baatein
na jaane kitne pehlu kaun jaane
Ravi Kant Anmol
यहां पर कौन है तू कौन जाने
हवा कुछ सरफिरी सी लग रही है
कहां जाएगी खुश्बू कौन जाने
तू किन लफ़्ज़ों में क्या समझा रहा है
तेरी बातों का मौज़ू कौन जाने
हवा में बे-तरह लहरा रहे हैं
ये बादल हैं कि गेसू कौन जाने
छुपी हर शे'र में हैं कितनी हैं बातें
न जाने कितने पहलू कौन जाने
रवि कांत अनमोल
too shabanam hai ki aansoo kaun jaane
yahaan par kaun hai too kaun jaane
hawaa kuchh sarfiri si lag rahi hai
kahaan jaayegi khushbhoo kaun jaane
too kin lafzon mein kya samjha rahaa hai
teri baaton kaa mauzu kaun jaane
hawa mein betrah lehraa rahe hain
ye baadal hain ki gesoo kaun jaane
chhupi har sher mein kitni hain baatein
na jaane kitne pehlu kaun jaane
Ravi Kant Anmol
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