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Sunday, August 30, 2015

अब तो आती नहीं इधर खुश्बू

उड़ गई ले हवा के पर खुश्बू
क्या पता जाए किस नगर खुश्बू

फूल की पंखुड़ी पे सोई थी
तितलियों से गई है डर खुश्बू

फूल झूमे बहार की धुन पर
पल में हर सू गई बिखर खुश्बू

असमानों से आग बरसी है
है पसीने से तर-ब-तर खुश्बू

अब तो बनती है कारखानों में
थी बहारों की हमसफ़र खुश्बू

बाग में जब भी आम पकते थे
आया करती थी मेरे घर खुश्बू

आप इक बार मुस्कुरा दीजे
जाएगी हर तरफ़ बिखर खुश्बू

तुम जहां भी जिधर भी जाते हो
फैलती है उधर उधर खुश्बू

बन गए अब मकान खेतों में
अब तो आती नहीं इधर खुश्बू

रवि कांत अनमोल

ये बादल हैं कि गेसू कौन जाने

तू शबनम है कि आंसू कौन जाने
यहां पर कौन है तू कौन जाने

हवा कुछ सरफिरी सी लग रही है
कहां जाएगी खुश्बू कौन जाने

तू किन लफ़्ज़ों में क्या समझा रहा है
तेरी बातों का मौज़ू कौन जाने

हवा में बे-तरह लहरा रहे हैं
ये बादल हैं कि गेसू कौन जाने

छुपी हर शे'र में हैं कितनी हैं बातें
न जाने कितने पहलू कौन जाने

रवि कांत अनमोल

too shabanam hai ki aansoo kaun jaane
yahaan par kaun hai too kaun jaane

hawaa kuchh sarfiri si lag rahi hai
kahaan jaayegi khushbhoo kaun jaane

too kin lafzon mein kya samjha rahaa hai
teri baaton kaa mauzu kaun jaane

hawa mein betrah lehraa rahe hain
ye baadal hain ki gesoo kaun jaane

chhupi har sher mein kitni hain baatein
na jaane kitne pehlu kaun jaane

Ravi Kant Anmol