आज़ाद नज़्म
रवि कांत अनमोल की नज़्में और ग़ज़लें
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Wednesday, October 7, 2015
ज़िंदगी टूटा हुआ इक खाब है
ज़िंदगी टूटा हुआ इक खाब है
या किसी किस्से का कोई बाब है
हां कभी शादाब था ये दिल मगर
अब कहां इस में वो आबो-ताब है
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