कई
लख्ते ज़िगर, आँखों के तारे छीन लेती है
ये
सरहद कितनी माँओं के दुलारे छीन लेती है
अजीज़ो,
मज़हबी वहशत से जितना बच सको बचना
ये वो
डाइन है जो बच्चे हमारे छीन लेती है
सियासत
खेल समझी है जिसे, वो जंग ऐ लोगो
फ़लक के
सबसे चमकीले सितारे छीन लेती है
जो
नफ़रत अपनी तक़रीरों वो भरते हैं सीनों में
बुज़ुर्ग़ों
से बुढापे के सहारे छीन लेती है
खुदा
को लाओ मत इसमें ये लालच की लड़ाई है
ज़मीनों
आसमां के सब सहारे छीन लेती है
बड़ी
बेदर्द है तक़दीर बेदर्दी पे आए तो
ये
मासूमों से खुशियों के पिटारे छीन लेती है
न उतरो
इस में तुम अनमोल इक पागल नदी है ये
सफ़ीने
तोड़ देती है किनारे छीन लेती है